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स्जोग्रेन सिंड्रोम के उपचार में , पंचकर्म

पंचकर्म उपचार स्जोग्रेन सिंड्रोम के उपचार में , पंचकर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। क्योंकि,  उपचार शरीर को उचित शक्ति और सहनशक्ति प्रदान करते हैं और रोगी को,  अपनी दैनिक गतिविधियों को आसानी से करने की अनुमति देते हैं।
1- नेत्र तर्पण ------
     एक विशेष अवधि के लिए, औषधीय तेल/घी का सामयिक प्रशासन, नेत्र तर्पण के रूप में जाना जाता है। तर्पण का उपयोग,  विशेष रूप से परिशुस्का नेत्र, अश्रु श्रव रहित नेत्र, जीवनिया घृत (जीवनिया समूह की औषधियों से तैयार घी) जैसी स्थितियों में किया जाता है।
2- परिसेका ------
     परिसेका के लिए,  गुनगुने दूध और सैंधव लवण का मिश्रण प्रयोग किया जा सकता है। यह आंखों के आसपास सूखापन, जकड़न को कम करने में बहुत लाभदायक है और शांत प्रभाव प्रदान करता है।
3- नेत्र अंजना -------
     अंजना के लिए, सैंधवु लवण, दारुहरिद्रा और हरिद्राk से तैयार,  लेप का उपयोग किया जा सकता है। यह चैनलों को खोलने और आंसुओं और ग्रंथियों के उचित प्रवाह को,  बनाए रखने में सहायता करेगा।
4- नस्य कर्म ------ 
     स्जोग्रेन सिंड्रोम के लक्षणों को,  कम करने में नस्य कर्म बहुत लाभदायक है। उपरोक्त स्थिति में, इसे अणु-तैला (तेल तैयार करना) के साथ दिया जाता है। यह थेरेपी आंखों के साथ-साथ, शुष्क मुंह दोनों के लिए,  लाभदायक है।
डॉ. आर.एस.दुबे पंचगव्य एवं आयुर्वेदिक चिकित्सक>

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